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‘पर्यावरण जागरूकता के लिए विज्ञान का ज्ञान जरूरी‘, स्कूली छात्रों को पर्यावरणीय सीख दे रहे शिक्षक दंपत्ति

‘पर्यावरण जागरूकता के लिए विज्ञान का ज्ञान जरूरी‘, स्कूली छात्रों को पर्यावरणीय सीख दे रहे शिक्षक दंपत्ति

पौड़ी जिले के विज्ञान शिक्षक ड़ा. अतुल और शिक्षिका पूनम बमराड़ा का शोध अमरीकी पुस्तक में प्रकाशित

देहरादून। सतत विकास की अवधारणा के लिए जरूरी है कि प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग हो। यदि इन संसाधनों का अनुचित उपयोग हुआ तो हिमालय और वातावरण को नुकसान पहुंचेगा। पर्यावरण के संरक्षण के लिए मानकों और नियमों का सख्ती से पालन होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इससे ग्लोबल वार्मिंग और क्लामेट चेंज की घटनाएं बढ़ेंगी और मानव को आपदाओं का सामना करना होगा। यह कहना है कि पौड़ी जिले के विज्ञान शिक्षक डा. अतुल और पूनम का। इन दोनों टीचर्स का शोध ‘एनवायरनमेंट एजुकेशन थ्रो एक्सपेरेम्शियल लर्निंग ए केस ऑफ़ पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड‘ को अंतराष्ट्रीय पुस्तक टीचिंग एंड लर्निग फॉर अ सस्टेनेबल फ्यूचर इनोवेटिव स्ट्रेटजीज एंड बेस्ट प्रैक्टिसेज‘ में प्रकाशित किया गया है।

राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय गंगा भोगपुर के शिक्षक डॉ अतुल बमराडा एवम राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय पोखरीखेत पावो की विज्ञान शिक्षिका पूनम बमराड़ा के समावेशी एवम अनुभवात्मक शिक्षा आधारित शोध को अंतराष्ट्रीय पुस्तक टीचिंग एंड लर्निग फॉर अ सस्टेनेबल फ्यूचर इनोवेटिव स्ट्रेटजीज एंड बेस्ट प्रैक्टिसेज में प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन अमेरिकन पब्लिशिंग हाउस आईजीआई ग्लोबल द्वारा किया गया है। इस शोध पुस्तक के लेखक कर्टिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चाई ली गोई हैं, जिन्होंने इस पुस्तक में दुनियाभर में पर्यावरण, क्लाइमेट चेंज एवम डिजिटलाइजेशन के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न शोधों का अध्ययन कर सत्रह उत्कृष्ट शोधों को संकलित किया है।

पुस्तक के प्रकाशन मंडल द्वारा डॉ अतुल एवम पूनम के शोध एनवायरनमेंट एजुकेशन थ्रो एक्सपेरेम्शियल लर्निंग ए केस ऑफ़ पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड को इस पुस्तक की थीम के अनुकूल पाया गया। इस शोध अध्ययन में यह पाया गया है कि पर्यावरण अध्ययन विषय को फाउंडेशनल एवम प्रिपेरेटरी स्टेज पर समस्त विषयों के साथ समावेशी रूप से पढ़ाए जाने एवम अनुभव आधरित कक्षा शिक्षण से बच्चे जल्दी विषयवस्तु को समझते हैं तथा इन प्रक्रियाओं को अपने जीवन में प्रयोग करना शुरु करते हैं। उनकी इस उपलब्धि पर गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग के प्रोफेसर राजकमल एवम इग्नू के प्रोफेसर श्रीधरन ने उन्होने भविष्य में विश्वविद्यालय के साथ मिलकर अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम करने का न्यौता दिया है।

कक्षा निर्देश पारंपरिक शिक्षण-अधिगम में मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन कभी-कभी यह बच्चों के पर्यावरणीय ज्ञान को बढ़ाने, पर्यावरण जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। विद्यार्थियों को प्रकृति के साथ सीधे संवाद करने और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को समझने में कक्षा से बाहर की गतिविधियाँ सम्मिलित हैं, जिनमें मुख्य रूप से फील्ड ट्रिप्स, साइट सीइंग, लर्निंग बाई डूइंग आदि शामिल हैं । पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जानने के लिए आउटडोर प्रक्रियाऐं बहुत प्रभावी सिद्ध हुई हैं।

आउटडोर प्रक्रियाऐं सजीव और निर्जीव चीजों के बीच संबंधों और प्रकृति में कारण और प्रभाव संबंध को समझने की गहन समझ भी प्रदान करती हैं। इसके अलावा प्रकृति से संबंधित गतिविधियों में भागीदारी से छात्रों में प्रकृति के प्रति लगाव, प्राकृतिक संरक्षण, पर्यावरणीय मुद्दों का ज्ञान, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और संवेदनशीलता में भी वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि जितना अधिक लोग पर्यावरणीय गतिविधियों और बाहरी शिक्षा कार्यक्रमों में संलग्न होते हैं, उतना ही अधिक वे प्रकृति के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण संरक्षण की प्रवृत्ति बढ़ती है।

कक्षा से बाहर किए जाने वाले क्षेत्रीय अध्ययन पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जानने तथा जिज्ञासा बढ़ाने का सबसे प्रभावी तरीका हैं। प्रकृति के बारे में बढ़ती रुचि और जिज्ञासा पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जानने के लिए प्रेरित करती है। आधुनिक पर्यावरणीय समस्याएँ प्रकृति के साथ मानवीय संबंधों से जुड़ी हुई हैं, जिससे प्रकृति के प्रति मानवता के व्यवहार में सुधार की आवश्यकता और अधिक स्पष्ट हो गई है। जो व्यक्ति प्राकृतिक मूल्यों की सराहना करते हैं और प्राकृतिक पर्यावरण से जुड़ाव महसूस करते हैं, उनमं पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार व्यवहार प्रदर्शित करने की अधिक संभावना होती है। इस अध्ययन में पाया गया कि बच्चों के लिए नए पारिस्थितिक प्रतिमान पैमाने के आधार पर प्रकृति और पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बहुत कम थी।

एक-पृथ्वी कार्यक्रम जो कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा उत्तराखंड के कुछ चुनिंदा विद्यालयों मे चलाया गया था। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के बाद, स्कूल में पर्यावरण शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों ने स्कूल शिक्षकों की मदद से इको-ट्रेल्स, विषय विशेषज्ञों से बातचीत, और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा चलाए गए शैक्षणिक कार्यक्रम के माध्यम से अपनी पर्यावरण जागरूकता विकसित की। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद यह पाया गया कि इस प्रकार के पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम निश्चित रूप से ज्ञान पर स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की क्षमता का निर्माण करने के लिए अनुसंधान और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी आवश्यक है ताकि वे छात्रों को पारिस्थितिकी और संरक्षण के मुद्दों के बारे में जागरूक कर सकें।

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम को विद्यार्थियों का प्रकृति के साथ जुड़ाव स्थापित करने, प्रकृति और पर्यावरणीय मुद्दों में उनकी जागरूकता और रुचि विकसित करने, और उनके ज्ञान को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से बनाया जाना चाहिए। साथ ही सही उम्र में प्रकृति के बारे में अतिरिक्त ज्ञान और अनुवर्ती सीखने की गतिविधियाँ अधिक जिम्मेदार नागरिकों के निर्माण में सहायक होंगी। इस प्रकार बच्चे अपने परिवार, पड़ोस और समुदाय के लिए शैक्षिक एजेंट के रूप में भी कार्य करेंगे।

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